हे त्रिपुरारी त्याग समाधि,
बुला रही है प्रजा दुखारी।
आशुतोष हे औघण दानी,
कृपा करो प्रभु अंतर्यामी ।।


फैली बहुत बडी बीमारी,
मरती सब संतान तुम्हारी।
फैल रहा विष धरा दुखारी,
जागो मृत्युञ्जय त्रिपुरारी।।


मङ्गल भवन अमङ्गल हारी,
छोडो प्रभु हरिनाम समाधि।
पियो पुनः विष प्रलयंकारी,
जिससे शीघ्र मिटे महामारी।।


गावें सब महिमा पुनि थारी,
निर्मल मति प्रभु करो हमारी।
छमहु सकल प्रभु चूक हमारी,
त्यागहु हे त्रिपुरारि! समाधि।।


डा.चूड़ामणि त्रिवेदी

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