मैं बहुत गर्वित हूंँ कि हिंदी मेरी मां है, मेरी भाषा है, मैंने हिंदी में मुस्कुराना सीखा, बोलना सीखा है। यह मेरी मातृभाषा, मेरी , क्षेत्रीय भाषा तथा राष्ट्रीय व राजभाषा है। अंतरराष्ट्रीय विश्व हिंदी दिवस यानी 10 जनवरी को आज मैं सभी को हार्दिक शुभकामनाएं देती हूंँ और आशा करती हूंँ हम सभी का हिंदी से अनुराग बना रहे और बढ़ता रहे।

गूंजी हिंदी विश्व में स्वपन हुआ साकार,
नवसृजन से हिंदी की जयकार।

हिंदी हमारी मां है और यह हमारे साथ हमेशा रहती है। पर क्यों हमें आवश्यकता पड़ती है विश्व हिंदी दिवस मनाने की? ऐसे उत्सव का आयोजन करने की क्या आवश्यकता है? आवश्यकता है ताकि हम हिंदी भाषा को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश कर सकें।
हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए जागरूकता पैदा कर सकें। प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन 10 जनवरी 1975 को नागपुर में आयोजित हुआ था। सम्मेलन हर चौथे वर्ष आयोजित होते रहे। ना केवल भारत में अपितु विदेशों में जैसे मॉरीशस, त्रिनिडाड टोबेगो, अमेरिका, ब्रिटेन आदि देशों में भी। पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 2006 में 10 जनवरी को प्रतिवर्ष विश्व हिंदी दिवस मनाए जाने की घोषणा की। विदेशों में बसे भारतीय भारत की मिट्टी से जुड़े रहने के लिए अपनी भाषा में अपने विचार अभिव्यक्त करते हैं। हिंदी में भिन्न-भिन्न देशों से निकलने वाली विविध पत्र पत्रिकाएं इसका प्रमाण है।
जैसे ‘भारत दर्शन’ न्यूजीलैंड से और ‘सरस्वती- पत्र’ कनाडा से प्रकाशित होती है।
मुझे गर्व है अपनी हिंदी भाषा पर और आज विश्व की सबसे अधिक बोले जाने वाली भाषा हिंदी भाषा है। कबीर जी ने कहा है भाषा बहता नीर। जैसे बहते हुए पानी में कुछ भी मिल जाए पानी उसे बाहर ले जाता है ठीक इसी तरह से हिंदी में भी अलग-अलग भाषाओं के शब्द मिलते गए और हिंदी का हृदय बहुत विशाल है वह उन शब्दों को आत्मसात करते चली गई।
क्योंकि प्राचीन समय से ही भारत पर अलग-अलग सभ्यताओं ने राज किया जिससे हिंदी मैं बहुत सारे नए शब्दों का आगमन हुआ ,किंतु हिंदी ने गुलामी की चादर कभी नहीं ओढी।
उस गुलामी के समय में भी चाहे भारतेंदु जी हो, दिनकर जी, वह सभी महान साहित्यकारों ने हिंदी के साहित्यिक शुद्ध भाषा का प्रयोग अपनी रचनाओं में किया। वर्तमान समय में जब आज हम स्वतंत्र हैं तो मेरा मन खिन्न हो जाता है यह देख कर के हिंदी भाषा की दुर्गति कर रहे हैं,वह लोग जिनके पास स्वयं समृद्ध शब्द भंडार नहीं है। कुछ भी लिखते हैं किसी भी शब्द का प्रयोग करते हैं उनकी की पुस्तकें बिकती हैं।
वो टीवी में आने वाले सभी कार्यक्रम हो या फिर सोशल मीडिया पर लिखने वाले वे लोग कुछ अन्य भाषाओं का शब्दों का प्रयोग करते हैं और जैसा कि आपको पता है टीवी घर-घर तक पहुंचता है   तो भावी पीढ़ी को लगता है यही शुद्ध हिंदी है।
ऐसे लोगों से यही कहना चाहूंगी कि हिंदी अपने आप में बहुत समृद्ध भाषा है, उसके पास अपना शब्द भंडार है।  साहित्यकारों को भी आगे आना होगा।
जनता की भावनाओं को समझते हुए उसी भाषा में शुद्धता बनाए रखते हुए हिंदी की रचनाएं करें।
तथा सभी से मेरा विनम्र निवेदन है कि हिंदी की पुस्तकें अधिक से अधिक पढ़ें आप याद रखिए जो हिंदी का साहित्यिक शुद्ध रूप आपको हिंदी के साहित्यिक पुस्तकों में मिलेगा वह किसी टीवी के माध्यम से या सोशल मीडिया से नहीं मिल सकेगा।

तो मेरे विचार में हिंदी पढ़े, पढ़ाएं, जीवन में लाएं।
मेरी भाषा हिंदी भाषा इस पर गर्वित हो।
मुझे गर्व है कि मेरी मां हिंदी है, मेरी भाषा मेरी जननी हिंदी है।
-वंदना शर्मा

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