जन्म कुंडली के पहले भाव से लेकर बारहवें भाव तक शरीर के विभिन्न अंगों को देखा जाता है और जिस अंग में पीड़ा होती है तो उस अंग से संबंधित भाव/ भावेश/ कारक रोग देते है| इन भाव से संबंधित दशा में व्यक्ति को रोग आने के प्रबल योग बनते हैं|
कोई भी रोग किसी एक ग्रह के कारण नहीं होता बल्कि अनेक ग्रहों और राशियों के मिलेजुले प्रभाव के कारण होता है।
कुंडली में फेफड़ो के रोग (Lungs Infection) के योग
- जन्म कुंडली के तीसरा भाव – 3rd House से कण्ठ की खराबी, गण्डमाला, श्वास, खाँसी, दमा, फेफड़े के रोग, आदि देखा जाता है।
- कुंडली में गुरु-शनि, गुरु-राहु और गुरु-बुध जब मिलते हैं तो अस्थमा, दमा, श्वास आदि के रोग, होने की सम्भावना होती है
- चतुर्थ भाव एवं कर्क राशि पर अत्यधिक पाप ग्रहों का प्रभाव होने पर फेफड़ों में किसी भी प्रकार का संक्रमण उत्पन्न हो सकता है,
- मिथुन राशि से गले के रोग देखे जाते हैं तथा कर्क राशि फेफड़े और जल संबंधित बीमारियों को दर्शाती है।
- राशि का स्वामी चंद्रमा खांसी, फेफड़े और जल संबंधित बीमारियाँ जुकाम और संक्रमण द्वारा होने वाले रोगों का कारक भी है।
- बुध एवं शनि इन ग्रहों का अधिकार स्नायु तंत्र पर है जब ये सभी ग्रह किसी भी प्रकार शरीर पर विपरीत प्रभाव डालते है तो श्वास संबंधी बीमारी को जन्म देते है।
- किसी भी व्यक्ति की कुंडली में जब चंद्रमा और बुध सबसे अधिक पाप प्रभाव में हो या नीच के हो, छठे, आठवें, बारहवें स्थान में स्थित हों और उनपर किसी भी पाप ग्रह या ग्रहों की दृष्टि हो तो श्वास या फेफड़ों संबंधी रोग होगा।
- चतुर्थ भाव में चंद्रमा यदि नीच (वृश्चिक राशि में) या कर्क राशि में होकर उस पर शनि, मंगल, राहू की दृष्टि या युति हो तो संक्रामक रोग होने की प्रबल संभावना होगी।
- सूर्य आरोग्य का कारक है और यदि वह गोचर में कमजोर चल रहा हो तो भी रोग होने की संभावना बढ़ जाती।
- जन्मकुण्डली के द्वादश भाव में स्थित ग्रह और इन भावों पर दृष्टि डालने वाले ग्रह व्यक्ति को अपनी महादशा, अंतर्दशा और गोचर में विभिन्न प्रकार के रोग उत्पन्न करते हैं।
कुंडली अनुसार संभावित रोग का समय
ज्योतिष के अनुसार किसी रोग विशेष की उत्पत्ति जातक के जन्म समय में किसी राशि एवं नक्षत्र विशेष पाप ग्रहों की उपस्थिति, उन पर पाप प्रभाव, पाप ग्रहों के नक्षत्र में उपस्थिति एवं रोग कारक ग्रहों की दशा एवं दशाकाल में प्रतिकूल गोचर , पाप ग्रह अधिष्ठित राशि के स्वामी द्वारा युति या दृष्टि रोग की संभावना को बताती है।
जन्मकुंडली में रोग उत्पन करने वाले ग्रहो के निदान के लिए पूजा, पाठ, मंत्र जप, हवन ( यज्ञ ), यंत्र , विभिन्न प्रकार के दान एवं रत्न आदि साधन ज्योतिष शास्त्र में उल्लेखित है।
कुशल ज्योतिषी द्वारा जन्म कुंडली के भावों, राशियों, नक्षत्रों तथा ग्रहों एवं विशिष्ट समय पर चल रही दशाओं का संपूर्ण अध्यन करके शरीर पर रोग का स्थान एवं प्रकृति, निदान तथा रोग का संभावित समय एवं तीव्रता का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है |