मलनिर्मोचनं पुंसां जलस्नानं दिने दिने ।
सकृद्गीतांभसि स्नानं संसारमलनाशनम्  ।।

(जल में प्रतिदिन किया हुआ स्नान मनुष्यों के केवल शारीरिक मल का नाश करता है, परन्तु गीताज्ञानरूप जल में एक बार भी किया हुआ स्नान संसार-मल को नष्ट करने वाला है ||)

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सनातन धर्म के एकमात्र धर्मग्रंथ है वेद। वेदों के चार भाग हैं- ऋग, यजु, साम और अथर्व। वेदों के सार को वेदांत या उपनिषद कहते हैं और उपनिषदों का सार या निचोड़ गीता में हैं। गीता सनातन धर्मावलंबियों का सर्वमान्य एकमात्र धर्मग्रंथ है।
महाभारत के युद्ध के पहले अर्जुन और श्रीकृष्ण के संवाद लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत हैं। गीता के उपदेशों पर चलकर न केवल हम स्वयं का, बल्कि समाज का कल्याण भी कर सकते हैं। श्रीमद्भगवतगीता में जो उपदेश दिए गए हैं उनमें जीवन के हर पहलू और हर अवस्‍था का पूरा सार छिपा है।
गीता के उपदेश में बताया गया है कि जो व्‍यक्ति बिना वजह किसी  पर संदेह करता है वह कभी खुश नहीं रह सकता। संदेह करने पर रिश्‍तों में कड़वाहट पैदा होती है। सदैव संदेह करने वाले व्यक्ति के लिए प्रसन्नता तीनों लोक में कहीं भी नहीं है। जो मनुष्य अपने मन को नियंत्रण में नहीं रख सकता वह शत्रु के समान कार्य करता है। भगवान कहते है कि मैं सभी प्राणियों को एकसमान रूप से देखता हूं। मेरे लिए ना कोई कम प्रिय है ना ज्यादा, लेकिन जो मनुष्य मेरी प्रेमपूर्वक आराधना करते हैं। वो मेरे भीतर रहते हैं और मैं उनके जीवन में आता हूं।हे अर्जुन विषम परिस्थितियों में कायरता प्राप्त करना श्रेष्ठ मनुष्यों के आचरण के विपरीत है। न तो स्वर्ग की प्राप्ति है और न ही इससे कीर्ति प्राप्त होगी। श्री कृष्ण कहते है  हे अर्जुन तुम ज्ञानियों की तरह बात करते हो, लेकिन जिनके लिए शोक नहीं करना चाहिए, उनके लिए शोक करते हो। मृत या जीवित, ज्ञानी किसी के लिए शोक नहीं करते। – जैसे इसी जन्म में जीवात्मा बाल, युवा और वृद्ध शरीर को प्राप्त करती है। वैसे ही जीवात्मा मरने के बाद नया शरीर प्राप्त करती है।इसलिए वीर पुरूष को मृत्यु ने नहीं घबराना चाहिए।न यह शरीर तुम्हारा है, न तुम शरीर के हो।

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यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से मिलकर बना है और इसी में मिल जाएगा। परन्तु आत्मा स्थिर है। फिर तुम क्या हो?-आत्मा अजर अमर है। जो लोग इस आत्मा को मारने वाला यह मरने वाला मानते हैं वे दोनों की नासमझ हैं। आत्मा न किसी को मारती है और न ही किस के द्वारा मारी जा सकती है। आत्मा न कभी जन्म लेती है और न मरती है। शरीर का नाश होने पर भी इसका नाश नहीं होता। तुम अपने आपको भगवान को अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है, जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त रहता है। जैसे मनुष्य अपने पुराने वस्त्रों को उतारकर दूसरे नए वस्त्रों धारण करता है, वैसे ही जीव मृत्यु के बाद अपने पुराने शरीर को त्यागकर नया शरीर प्राप्त करता है। शस्त्र इस आत्मा को काट नहीं सकते, अग्नि इसको जला नहीं सकती। जल इसको गीला नहीं कर सकता। वायु इसे सूखा नहीं कर सकती।

~आचार्य अभिजीत

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