षटतिला एकादशी के व्रत नियम

  • षटतिला एकादशी का व्रत एकादशी भोर से शुरू होकर द्वादशी की सुबह संपन्न होता है।
  • व्रत का समापन केवल भगवान विणु की पूजा अनुष्ठान करने के बाद पारण के दौरान द्वादशी के दिन किया जा सकता है।
  • व्रत के दौरान, भक्त भोजन और अनाज का सेवन नहीं करते हैं, लेकिन इस विशेष दिन पर कुछ लोग तिल का सेवन करते हैं।
  • व्रत की मध्यावधि में, भक्त दिन में फल और दूध का सेवन करके भी व्रत का पालन कर सकते हैं।

षटतिला एकादशी रविवार, फरवरी 7, 2021 को

एकादशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 07, 2021 को 06:26 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – फरवरी 08, 2021 को 04:47 ए एम बजे

8 फरवरी को, पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 01:42 पी एम से 03:54 पी एम

पारण तिथि के दिन हरि वासर समाप्त होने का समय – 10:25 ए एम

षटतिला एकादशी पारण
वैष्णव षटतिला एकादशी सोमवार, फरवरी 8, 2021 को
9वाँ फरवरी को, वैष्णव एकादशी के लिए पारण (व्रत तोड़ने का) समय – 07:04 ए एम से 09:17 ए एम
पारण के दिन द्वादशी सूर्योदय से पहले समाप्त हो जाएगी।
एकादशी तिथि प्रारम्भ – फरवरी 07, 2021 को 06:26 ए एम बजे
एकादशी तिथि समाप्त – फरवरी 08, 2021 को 04:47 ए एम बजे

षटतिला एकादशी व्रत का पूजा विधान
जो भक्त षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उन्हें सुबह जल्दी उठना चाहिए और स्नान करना चाहिए।
उन्हें पूजा स्थल को साफ करना चाहिए, वेदी को सजाना और श्रृंगार करना चाहिए और फिर भगवान विष्णु और भगवान कृष्ण की मूर्ति, प्रतिमा या उनके चित्र को स्थापित करना चाहिए।
भक्तों को पूजा अर्चना करनी चाहिए और पूजन कर देवताओं की पूजा करनी चाहिए और भगवान कृष्ण के भजन और विष्णु सहस्रनाम का पाठ करना चाहिए।
प्रसाद (पवित्र भोजन), तुलसी जल, फल, नारियल, अगरबत्ती और फूल देवताओं को अर्पित करने चाहिए और मंत्रों का लगातार जाप करना चाहिए और भक्ति गीत गाना चाहिए।
अगली सुबह यानि द्वादशी पर वही पूजा दोहराई जानी चाहिए और भक्त पवित्र भोजन का सेवन करने के बाद अपनी षट्तिला एकादशी व्रत का समापन कर सकते हैं।


अथ षटतिला एकादशी महात्म्य
एक समय दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा हे ब्राह्मण! मनुष्य मृत्युलोक में ब्रह्महत्या आदि महान पाप, दूसरे के धन की चोरी, दूसरे की उन्नति देखकर ईर्ष्या आदि करते हैं परंतु फिर भी वह नर्क नहीं पाते सो क्या कारण है? वह न जाने कौन सा अल्प दान या अल्प परिश्रम करते हैं।
यह सब आप कृपापूर्वक कहिए। इस पर पुलस्त्य ऋषि बोले हैं महाभाग!आपने मुझसे अत्यंत गंभीर प्रश्न पूछा है इसको ब्रह्मा, विष्णु,इंद्र आदि भी नहीं जानते परंतु मैं आपको यह गुप्त तत्व अवश्य ही बताता हूं। माघ माह के आने पर मनुष्य को स्नान आदि से शुद्ध रहना चाहिये।और इंद्रियों को वश में करके तथा काम, क्रोध, लोभ,मोह, ईशा, अभिमान आदि का त्याग कर भगवान का स्मरण करना चाहिये।
हाथ पैर धोकर पुष्प नक्षत्र में गोबर, कपास, तिल, मिलाकर कंडे बनाना चाहिये। वह इन क॓डों से 108 बार हवन करें और यदि इस दिन मूल नक्षत्र और द्वादशी हो तो नियम से रहे।
स्नान आदि नित्य क्रिया से शुद्ध होकर भगवान की पूजा कीर्तन करना चाहिये। एकादशी के दिन व्रत और रात्रि को जागरण तथा हवन करना चाहिए।दूसरे दिन धूप,दीप, नैवेद्य से भगवान की पूजा कर खिचड़ी का भोग लगाना चाहिये।
इस दिन कृष्ण भगवान का पूजन करना चाहिये।
पेठा ,नारियल, सीताफल या सुपारी सहित अधर्य देना चाहिये और फिर स्तुति करनी चाहिये।
हे भगवान! आप अशरणों को शरण देने वाले हैं। आप संसार में डूबे हुये का उद्धार कीजिए।
हे पुंडरीकाक्ष। हे कमलनेत्र धारी!हे विश्व भगवान! हे जगतगुरु! आप लक्ष्मी जी सहित मेरे इस तुच्छ अधर्य को स्वीकार करो। इसके पश्चात ब्राह्मण को जलभरा कुंभ प्रदान करना चाहिये। ब्राह्मणों को श्यामा गाय और तिल पात्र भी देना अच्छा है।तिल, स्नान और भोजन में श्रेष्ठ है अतः मनुष्य को तिलदान भी करना चाहिये। इस प्रकार जो मनुष्य जितने तिल का दान करता है उतने ही वर्ष स्वर्ग में निवास करता है।
१.तिल सनान २.तिल का उबटन ३.तिल का हवन ४.तिलोदक ५. तिल का दाभोजन ६.तिल का दान।
यह षटतिला एकादशी कहलाती हैं। इससे अनेक प्रकार के पाप नष्ट हैं। जाते हैं नारद ऋषि बोले- हे भगवान! आपको नमस्कार है? इस षटतिला एकादशी का क्या पुण्य और क्या कथा है,सो कहिये।
अथ षटतिला एकादशी कथा-
श्रीकृष्ण भगवान बोले- हे नारद! मैं तुमसे आंखों देखी सत्य घटना कहता हूं। प्राचीन काल में मृत्यु लोक की सत्य घटना कहता हूं। प्राचीन काल में मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी थी। वह सदैव व्रत किया करती। एक समय वह एक महा व्रत करती रही।इससे उसका शरीर अत्यंत दुर्बल हो गया था। परंतु उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों को धन तथा अन्नदान नहीं किया। इस प्रकार मैंने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत आदि से अपना शरीर शुद्ध कर लिया है और इसको वैष्णव लोक भी मिल जायेगा परंतु इसमें कभी भी अन्नदान नहीं किया है इससे इसकी तृप्ति होना कठिन है। ऐसा सोच कर मैं मृत्युलोक में गया और ब्राह्मणी अन्न मांगा। वह बोली -आप यहां किस लिए आये हैं? मैंने कहा मुझे भिक्षा चाहिये। उसने मुझे एक मृतपिंड दे दिया। मैं उसे लेकर लौट आया।कुछ समय बीतने पर ब्राह्मणी भी शरीर त्याग कर स्वर्ग आई। मृतपिंड के प्रभाव से उसे एक आत्मग्रह मिला परंतु अपने को वस्तुओं से शुन्य पाया। वह मेरे पास आई और बोली- है भगवान! मैंने अनेकों व्रत आदि से आपकी पूजा की है परंतु फिर भी मेरा घर वस्तुओं से शुन्य है। मैंने कहा -तुम अपने ग्रह जाओ और देव स्त्रियां तुम्हें देखने आएंगे जब तुम्हें देखने आयेंगी जब तुम उनसे षटतिला एकादशी का पुण्य और विधि सुनलो तभी ही द्वार खोलना।
भगवान के वचन सुनकर वह अपने घर गई और जब देव स्त्रियां आकर द्वार खुलवाने लगी तब ब्राह्मणी बोली कि यदि आप मुझे देखने आई हैं तो षटतिला एकादशी का माहात्म्य कहिये। उनमें से एक देव -स्त्री बोली सुनो मैं कहती हूं। जब उसने षटतिला एकादशी का माहात्म्य सुना दिया तब उस ने द्वार खोला। देव -स्त्रियों ने उसको सब स्त्रियों से अलग पाया।ब्राह्मणी ने भी देव स्त्रियों के कहे अनुसार षटतिला का व्रत किया और इसके प्रभाव से उसका गॢह धन-धान्य से भरपूर हो गया। अतः मनुष्यों को षटतिला एकादशी का व्रत करना चाहिये। इससे मनुष्यों को जन्म -जन्म में आरोग्यता प्राप्त होती है और दरिद्रता नष्ट हो जाती है। इस वक्त से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।

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