ज्ञानसंजीवनी

हाँ मेरे बंधु! मेरे स्वजनों !सही कह रहें हैं आप सभी जब भगवान कुछ खाते ही नहीं तो उनको भोग क्यों लगायें? उनके आगे छप्पन व्यंजन क्यों रखें?

ये तो आप जानते ही हैं कि भक्त की भक्ति के आगे भगवान नतमस्तक हो जाते हैं और जिन भक्तों ने भक्तमाल पढ़ी होगी उसमें भगवान ने साक्षात प्रगट होकर भक्तों का दिया खाया भी है।वैसे एक बात बता दूँ,भगवान तो भाव के भूखे होते हैं।कहा भी है—

भाव का भूखा हूँ मैं,
बस भाव ही एक सार है |
भाव से मुझको भजे तो,
उसका बेड़ा पार है ||

अन्न धन अरु वस्त्र भूषण,
कुछ न मुझको चाहिए |
आप हो जाये मेरा बस,
पूरण यह सत्कार है ||

भाव बिन सूनी पुकारे,
मैं कभी सुनता नहीं |
भाव की एक टेर ही,
करती मुझे लाचार है ||

भाव बिन सब कुछ भी दें तो,
मैं कभी लेता नहीं |
भाव से एक फूल भी दें,
तो मुझे स्वीकार है ||

जो भी मुझ में भाव रख कर,
आते है मेरी शरण |
मेरे और उस के ह्रदय का,
एक रहता तार है ||

यदि भगवान आपके द्वारा उनके सामने रखे पदार्थों को खाने लग जायें तो हम-आप हिसाब लगाने लगेंगे कि दस(10) रुपये का एक गुलाबजामुन आता है तो तीस (30)दिन में तीस(30) गुलाबजामुन हो गये, तो ये तो तीन सौ(300)महीने का खर्चा भगवान के लिये हो गया ।वो तो अच्छा है कि भगवान खाते नहीं हैं।आप जितना रखते हो उतना ही रहता है वैसा का वैसा ही वजन में और गिनती में भी।तो फिर क्यों रखें,ये विशेष प्रश्न है।मैं आपको एक व्यावहारिक उदाहरण द्वारा बताने का प्रयास करती हूँ

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देखिये जैसे माता-पिता होते हैं।सभी कुछ उन्हीं का है।पर जब उनका बच्चा उनको अपने हाथ से कुछ खिलाता है,उनको देता है,उनका ध्यान रखकर कुछ वस्तु उनके लिये लाता है तो वो आनन्द,वो खुशी माता-पिता को कितनी होती है,ये बहुत से माता-पिता अवश्य जानते होंगे।
हां भगवान जी हमारे-आपके दिये भोग-पदार्थ पर अपनी कृपा दृष्टि डाल देतें हैं , जिससे वो प्रसाद यानि (प्रसन्नता दायक) बन जाता है और हम सभी उस भोग-पदार्थ को प्रसाद मानकर खाते हैं।

भोग लगाने का मंत्र और विधि

भगवान को भोग में यानि नैवेध्य में मीठे व्यंजनों, फलों को चढ़ाने का विशेष महत्व है। अधिकतर भक्त जो भी वस्तु लाते हैं वो भगवान को अर्पण करके ही प्रयोग करते हैं।

प्राणाय स्वाहा : तर्जनी मध्यमा और अंगुष्ठ द्वारा |
अपानाय स्वाहा : मध्यमा, अनामिका और अंगुष्ठ द्वारा |
व्यानाय स्वाहा : अनामिका, कनिष्ठिका और अंगुष्ठ द्वारा |
उदानाय स्वाह : मध्यमा, कनिष्ठिका अंगुष्ठ द्वारा |
सामानाय स्वाहा : तर्जनी, अनामिका, अंगुष्ठ द्वारा |
ब्रह्मणे स्वाहा : सभी पांचो उंगलियो द्वारा |

इस प्रकार भोग अर्पण करने के बाद प्राशानारथे पानियम समर्पयामी मन्त्र बोल कर एक चम्मच जल भगवन को दिखा कर थाली में छोड़े | यह क्रिया में एक ग्लास पानी में इलायची पावडर डाल कर भगवान के सामने रखने की भी परंपरा कई स्थानों पर हे | फिर ऊपर दिए अनुसार छह ग्रास दिखाए | आखिर में चार चम्मच पानी थाली में छोड़े | जल को छोड़ते वक्त “ अमृतापिधानमसी, हस्तप्रक्षालनम समर्पयामी, मुखप्रक्षालनम समर्पयामी तथा आचामनियम समर्पयामी “ यह चार मन्त्र बोले पश्यात फूलो को गंध लगाकर करोध्वरतनं समर्पयामी बोल कर प्रभु को चढ़ाये | इस प्रकार नैवेध्य अर्पण करने के बाद यह थाली को कुछ देर तक वहा रहने दे और बाद में यह प्रसाद के रूप में सभी को बांटे और बाद में खुद ग्रहण करें ||
अन्य भोग लगाने के मंत्र

श्रीकृष्ण और विष्णु को भोग के लिए मंत्र
त्वदीयं वस्तु गोविन्द तुभ्यमेव समर्पये ।
गृहाण सम्मुखो भूत्वा प्रसीद परमेश्वर ।।


सभी देवी देवताओं को भोग के लिए मंत्र :
शर्कराखण्ड खाद्यानि दधिक्षीरघृतानि च
आहारं भक्ष्यभोज्यं च नैवेद्य प्रतिगृह्यताम्।।

सुमित्रा गुप्ता सखी

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