ब्रह्मदेव के कर्णों से १० दिशाओं की उत्पत्ति होती है और फिर उनके अनुरोध पर ब्रह्मदेव उनके पतियों के रूप में ८ देवताओं की रचना करते हैं और उन्हें ८ दिशाओं के अधिपति बना कर दिक्पालों का पद प्रदान करते हैं। यहाँ पर एक बात ध्यान देने वाली है कि अधिकतर ग्रंथों में ईशान दिशा के स्वामी भगवान शिव और अधो दिशा के स्वामी भगवान विष्णु माने जाते है। इस लेख में हम १० दिशाओं के देवताओं के बारे में विस्तार से जानेंगे।

१. पूर्व
दिशा: पूर्वा
दिक्पाल: इंद्र
मन्त्र: ॐ लं इन्द्राय नमः
अस्त्र: वज्र
पत्नी: शची
ग्रह: सूर्य
देवी: सूर्या

२. आग्नेय
दिशा: आग्नेयी
दिक्पाल: अग्नि
मन्त्र: ॐ अं अग्नेयाय नमः
अस्त्र: दंड
पत्नी: स्वाहा
ग्रह: शुक्र
देवी: शुक्रा

३. दक्षिण
दिशा: दक्षिणा
दिक्पाल: यम
मन्त्र: ॐ मं यमाय नमः
अस्त्र: पाश
पत्नी: धूमोर्णा
ग्रह: मंगल
देवी: मंगला

४. नैऋत्य
दिशा: नैऋती
दिक्पाल: सूर्य
मन्त्र: ॐ सं सूर्याय नमः
अस्त्र: दंड
पत्नी: छाया
ग्रह: राहु
देवी: शिवानी

५. पश्चिम
दिशा: पश्चिमा
दिक्पाल: वरुण
मन्त्र: ॐ वं वरुणाय नमः
अस्त्र: पाश
पत्नी: वारुणी
ग्रह: शनि
देवी: शनिनी

६. वायव्य
दिशा: वायवी
दिक्पाल: वायु
मन्त्र: ॐ यं वायवे नमः
अस्त्र: अंकुश
पत्नी: स्वास्ति
ग्रह: चंद्र
देवी: चन्द्रिका

७. उत्तर
दिशा: उत्तरा
दिक्पाल: कुबेर
मन्त्र: ॐ सं कुबेराय नमः
अस्त्र: गदा
पत्नी: भद्रा
ग्रह: बुध
देवी: इला

८. ईशान
दिशा: एशानी
दिक्पाल: सोम
मन्त्र: ॐ चं चन्द्राय नमः
अस्त्र: पाश
पत्नी: रोहिणी
ग्रह: बृहस्पति
देवी: तारा

९. उर्ध्व
दिशा: ऊर्ध्वा
दिक्पाल: ब्रह्मा
मन्त्र: ॐ ह्रीं ब्रह्मणे नमः
अस्त्र: पद्म
पत्नी: सरस्वती
ग्रह: केतु
देवी: ब्राह्मणी

१०. अधो
दिशा: अधस्‌
दिक्पाल: अनंत
मन्त्र: ॐ अं अनन्ताय नमः
अस्त्र: नागपाश
पत्नी: विमला
ग्रह: लग्न
देवी: वैष्णवी*

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