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प्रश्न: सुंदरकांड में रावण सहित प्रत्येक राक्षस के घर को मंदिर और विभीषण जी के घर भवन क्यों कहा गया है?

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।

गयउ दसानन मंदिर माहीं।
अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।

भवन एक पुनि दीख सुहावा।
हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।

उत्तर :

सियाराम मय सब जग जानी ।
करउँ प्रनाम जोरी जुग पानी ।।
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सीताराम    चरण   रति  मोरे ।
अनुदीन  बढ़उँ  अनुग्रह  तोरे ।।
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भगवान श्री रामचंद्र जी के चरणों में कोटि-कोटि प्रणाम!
भूत भावन भगवान शंकर व श्री हनुमान जी को दंडवत !
पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज को बारंबार वंदन !

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श्री रामचरितमानस में मुख्य रूप से चार कथावाचक और चार श्रोता हैं ।
1 .पहले कथावाचक हैं पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज !
उन्होंने जितनी भी बातें,श्री रामचरितमानस में लिखी भावना प्रधान रही!
रामकथा कलि कामद गाई।
सुजन सजीवनि मूरि सुहाई।।

बुध बिश्राम सकल जन रंजनि।
रामकथा कलि कलुष बिभंजनि॥

2. दूसरे कथावाचक हैं याज्ञवल्क्य जी और श्रोता हैं भरद्वाज जी!
याज्ञवल्क्य जी ने जितनी भी बातें कहीं,वह कर्म प्रधान रही!
महामोहु महिषेसु बिसाला।
रामकथा कालिका कराला॥

रामकथा ससि किरन समाना।
संत चकोर करहिं जेहि पाना॥

3. तीसरे कथा वाचक हैं भगवान शिव और श्रोता मेरी मां भवानी !
भगवान शिव ने जितनी भी बातें कहीं ज्ञान प्रधान रही !
रामकथा कलि बिटप कुठारी।
सादर सुनु गिरिराजकुमारी॥

रामकथा सुंदर कर तारी।
संसय बिहग उडावनिहारी।।

4 . चौथे कथावाचक हैं काग भुसुंडि जी और मुख्य श्रोता है पक्षीराज गरुड़ जी !
काग भुसुंडि जी ने जितनी भी बातें कहीं सब भक्ति प्रधान रही।
परंतु एक विचित्र बात है कि यहां पर काग भुसुंडि जी ने राम जी की कथा की महिमा कम गायी है उल्टे श्रोता( गरुड़ जी ) ने ही राम जी की कथा की महिमा गाई !
क्यों ?
क्योंकि भगवान राम का पाश काटने के बाद गरुड़ जी स्वयं मोह में पड़ गए,भगवान राम की माया ने अपना प्रभाव दिखाया ।
फल स्वरूप गरुड़ जी नारद जी के पास गए,नारद जी ने ब्रह्मा जी के पास भेजा,ब्रह्मा जी ने भगवान शंकर के पास भेजा और भगवान शंकर ने काग भुसुंडि जी के पास भेजा ।
परंतु काग भुसुंडि जी के आश्रम के दर्शन मात्र से ही उनके सारे संशय समाप्त हो गए थे!

उत्तरकांड में गरूड़ जी कह भी रहे हैं…

सुनहु तात जेहि कारन आयउँ।
सो सब भयउ दरस तव पायउँ॥

देखि परम पावन तव आश्रम।
गयउ मोह संसय नाना भ्रम॥

अब श्रीराम कथा अति पावनि।
सदा सुखद दु:ख पुंज नसावनि॥

सादर तात सुनावहु मोही।
बार बार बिनवउँ प्रभु तोही॥

इन चारों स्थानों पर महिमा राम जी की ही गाए जा रही है परंतु अलग-अलग भाव से।
जो जैसा होता है उसी अनुसार कथा का वर्णन करता है!

जिस प्रकार भिन्न-भिन्न मार्गो से होती हुई नदियां अंत में जाकर समुद्र में मिल जाती है ठीक उसी प्रकार भिन्न-भिन्न विचारधाराओं से भगवान की भक्ति का अंतिम लक्ष्य भगवत प्राप्ति ही है!

गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के अलावा तीन कथावाचकों ने जो-जो कहा,उसमें गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने अपनी भावनाएं भी सम्मिलित की!

और फिर हम बालकांड के सातवें श्लोक को क्यों भूल जाते हैं ?
नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वांत: सुखाय तुलसी रघुनाथगाथा भाषानिबंधमतिमंजुलमातनोति॥

जिन गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने सभी पुराण आगम निगम और जितनी भी रामायण लिखी गई,उन सब का निचोड़ श्री रामचरितमानस में एकत्र किया,जिसमें उच्च भावनाओं को स्थान दिया गया!
क्या ऐसे कलिकाल चूड़ामणि और विद्वान गलत व्याख्या करेंगे?
कदापि नहीं!

नोट–यह जानकारी कली चूड़ामणि पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज की भावनाओं को प्रकट करने तथा श्रीरामचरितमानस के मूल को समझने के लिए है।
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अब आते हैं मुख्य प्रश्न के उत्तर पर…..
लंका के सभी घरों पर कुछ ना कुछ शुभ चिन्ह अवश्य बने हुए थे !
प्रजज्वाल तदा लंका रक्षोगण गृहैः शुभैः ।
सिताभ्र सदृशैश्चित्रैः पद्म स्वस्तिक संस्थितैः ।।
लंका सफेद बादलों के समान सुंदर और भिन्न भिन्न राक्षसों से प्रकाशित हो रही थी ।
वें घर कोई कमल,कोई स्वस्तिक के चिन्ह या आकार से युक्त थे !
श्री वाल्मीकि रामायण/चतुर्थ सर्ग

श्री हनुमान जी ने मां सीता की खोज में सभी राक्षसों के घरों में जाकर देखा कि बहुत से राक्षस भिन्न भिन्न प्रकार का आचरण कर रहे हैं ।
(यहां पर विस्तार भय से सब कुछ नहीं बताया जा रहा है श्री वाल्मीकि रामायण के 4 वें सर्ग में देख लीजिएगा आपको वहां पर यह वर्णन मिल जाएगा!)

आगे..
मां सीता जगत जननी है।

यह बात आप भी जानते हैं कि जब तक मंदिर में भगवान का श्री विग्रह प्रतिष्ठित न हो, तब तक उसे मंदिर की संज्ञा नहीं दी जा सकती क्योंकि मंदिर के दर्शन तो ठीक है परंतु अभिलाषा भगवान के श्री विग्रह की ही रहती है!

अब आपके मन में प्रश्न आएगा कि मां सीता के अकेले श्री विग्रह की बात कही जा रही है।
तो ध्यान दीजिए
देवता का पूजन करते समय उनका सर्वप्रथम ध्यान किया जाता है वही कार्य यहां पर श्री हनुमान जी ने किया!

श्री हनुमान जी ने उन सभी राक्षसी में मां सीता के दर्शन(ध्यान) करके ही पहचानने का प्रयास किया और भगवान राम पहले से ही हृदय में स्थित हैं ।
इसलिए जहां-जहां श्री सीताराम जी को हृदय में धारण कर श्री हनुमान जी ने अपने चरण रखें वहां वहां गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने उस घर को “मंदिर” की संज्ञा दी!
चूंकि श्री हनुमान जी गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज के गुरु भी हैं ।
गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज अपने गुरु के बारे में यही बताना चाहते थे कि उन्होंने जिस स्त्री को भी देखा उन सभी में मां सीता को ही ढूंढा ।

आइये अब जानते हैं कि विभीषण जी के घर को गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने भवन क्यों कहा?

श्री हनुमान जी ने जैसे ही विभीषण जी के घर पर भगवान के आयुध बने देखें और विचार करने लगे,इतने में विभीषण जी जाग गए और जागते ही भगवान राम का नाम लिया ।
मन महुँ तरक करैं कपि लागा।
तेहीं समय बिभीषनु जागा
राम राम तेहिं सुमिरन कीन्हा।
हृदयँ हरष कपि सज्जन चीन्हा॥

श्री हनुमान जी और अचंभित हुए कि यहां (लंका)पर राम जी का भक्त कौन है ?
श्री हनुमान जी को कालनेमि याद आ गया इसलिए उन्होंने बुद्धि विवेक से कार्य लिया और अंदर नहीं गए।

चूंकि पहले बताया जा चुका है कि श्री सीताराम जी की छवि मन में धारण करके जिस जिस घर पर भी श्री हनुमान जी गए वहां पर गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने “मंदिर” शब्द का उपयोग किया !

श्री हनुमान जी श्री सीताराम की छवि बसा कर विभीषण जी के घर नहीं गए,बाहर ही ठहर गए और राम नाम जप करने लगे ।
विभीषण जी ने जब राम नाम सुना तो वे तुरंत बाहर आए और श्री हनुमान जी से उनका परिचय हुआ ।
इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने विभीषण जी के घर को “भवन” की संज्ञा दी “मंदिर” कि नहीं!

ध्यान दीजिएगा… गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने किष्किंधा कांड में भी “मंदिर” की संज्ञा दी है….
कब ?
जब लक्ष्मण जी,सुग्रीव जी से मिलने गए तो सुग्रीव जी के लिए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज कह रहे हैं..
करि विनति मन्दिर ले आये ।
चरन पखारि पलंग बैठाए ।।
यहां पर ध्यान दीजिए कि श्री लक्ष्मण जी ने भगवान राम और मां सीता,दोनों की छवि अपने हृदय में बसा रखी थी इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने सुग्रीव के महल को भी “मंदिर” की संज्ञा दी!

अब 2 प्रश्न उठते हैं ….
1. पहला प्रश्न…बालकांड में जब भगवान राम और मां सीता विवाह करने के पश्चात अयोध्या में पधारे तो दशरथ जी के महल को “मंदिर” क्यों नहीं कहा गया ?
तो इसका सीधा सा उत्तर है कि जहां पर भगवान के श्री विग्रह(मूर्ति) रहते हैं उसे मंदिर की संज्ञा दी जाती है, परंतु जहां पर साक्षात प्रत्यक्ष रूप से भगवान राम और मां सीता रहते हैं वह तो साक्षात अयोध्या ही है ।

2. दूसरा प्रश्न..किष्किंधा कांड में भगवान राम सुग्रीव जी के साथ रहे तो उनके स्थान को मंदिर की संज्ञा क्यों नहीं दी गई ?
इसका उत्तर भी पहले प्रश्न के उत्तर में ही छिपा है जो अभी दिया गया!

इसीलिए कली चूड़ामणि पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज ने कहा है…

मंदिर मंदिर प्रति करि सोधा।
देखे जहँ तहँ अगनित जोधा।।

गयउ दसानन मंदिर माहीं।
अति बिचित्र कहि जात सो नाहीं।।

सयन किए देखा कपि तेही।
मंदिर महुँ न दीखि बैदेही।।

भवन एक पुनि दीख सुहावा।
हरि मंदिर तहँ भिन्न बनावा।।

निष्कर्ष :
जिनके हृदय में साक्षात् श्री सीताराम जी विराजमान हो ऐसे श्री हनुमान जी के चरण जहां-जहां पड़ेंगे ऐसा स्थल अपने आप में मंदिर हैं ।
इसी भावना से गोस्वामी तुलसीदास जी ने राक्षसों के प्रत्येक घर को “मंदिर” कहा ।
लेकिन विभीषण जी के घर को “भवन” कहा क्योंकि श्री हनुमान जी अंदर नहीं गए थे विभीषण जी स्वयं उनसे मिलने बाहर आए थे!
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धन्य है पूज्य पाद गोस्वामी तुलसीदास जी महाराज जिन्होंने अपनी भावना रूपी धागे में,राम रूपी मोती संजोये और राम नाम की माला तैयार की!
उस माला को जपने का सौभाग्य हमें आज भी प्राप्त हो रहा है ।

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